Indumukho's blog
This blog will reflect my views,my ideas,whatever I have learned from life.
Thursday, May 14, 2020
Thursday, August 29, 2019
Wednesday, February 20, 2019
Friday, May 11, 2018
मलाल
बींधा
तीखी बातों से
एक दूजे को
हरदम
अब देखो वो जख्म
भीतर कैसे पलता है
लाख बिसारना चाहो
कांटे सा कसकता है
टीस उठे हर वक़्त
मरहम काम ना करता है
नासूर बन न जाये कहीं
हरदम खून सा रिसता है
वक़्त पर माफ़ी
मांग ली होती,
रहता नहीं मलाल
तुम भी चुप बैठे रहे
जैसे फर्क क्या पड़ता है
अहम् हमारा टकराये
मन कांच दरकता है
मन आहत पर
चेहरा बुजदिल
मुस्कानों को ढोता
हर रिश्ते का
एक मुखौटा
चिपका लेता है
दुनिया जलती
हरदम कैसे
बिंदास ये
दिखता है
~ इंदिरा
Thursday, August 13, 2015
पिंजरे का पंछी
लाकर मुझको तूने था एक पिंजरे में डाला
सोने के नुपुर दिए पिंजरा भी सोने वाला
मरना था आसान नहीं पिंजरे को ही अपनाया
तेरे दाना पानी को ही अपना मैंने जाना
मुक्त गगन के पंछी मुझपे हँसा करते थे
पर तेरे प्यार के आगे सीखा शीश झुकाना
तेरी चाहत खत्म हुई मन तेरा भरपाया
अब पिंजरे खोलके तू कहता है अब उड़ जाना
उड़जा जहाँ भी जी चाहे वापस मत तू आना
आदत हो गयी पिंजरे की अब कैसी आज़ादी
मैंने कब सीखा है अपने पंखों को फैलाना
~इंदिरा
फलसफा
देखिये तो लोग
यहाँ कितने मूढ़ हैं
काटे उसी डाल को
जिसपर आरूढ़ हैं
जो भी बोया काटे वही
जो भी दिया पाये वही
जीवन का फलसफा
इतना भी नहीं गूढ़ हैं
- Indira
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