Wednesday, May 29, 2013

जीत-हार

ज़िन्दगी सोचिये तो मजे का एक खेल है
या फिर सब खेलों की
मिलीजुली भेल है|
पति/पत्नी एक दूजे की हार बल पे छक्के जमाते है
और कभी बच्चे की एक गुगली पे क्लीन बोल्ड हो
जाते हैं |
कभी आप ऑफिस में साथियों को
शतरंज के मोहरों की तरह नचाते हैं
कभी बॉस की एक चाल से चेकमेट हो जाते हैं|
कभी दुश्मनों के दस मुक्के हंस के झेल जाते हैं
कभी दोस्त के एक मुक्के से धराशायी हो जाते हैं|
कभी जिन्दगी की पूरी पारी खेल जाते हैं
कभी अम्पायर ऊँगली उठा देतो
आधी पारी में ही आउट हो जाते हैं|
एक ही जिंदगी में कई खेलों का मजा पाते हैं
कभी जीत के हार
कभी हार के जीत जाते हैं|


~Indira

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