ये गर्दन है कि झुकना नहीं चाहती
झुकना तो चाहिए
भगवान के सामने धन्यवाद में
किसी के सम्मान में
किसी के प्यार में
कृतज्ञता बोध में
अनुग्रह में
पर ये अकड़ी रहती है
अहंकार में
खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने के अभिमान में
जानती नहीं
जब अंत आता है
सब समान हो जाते हैं
क्या राजा क्या रंक
कोई चन्दन चिता चढ़े
या साधारण लकड़ी
जलते सभी हैं एक समान
पर जब तक जीवन है
ये रहती है मदहोश
एक छलावे में
खुद को सर्वश्रेष्ट मानती
ये गर्दन है की झुकना नहीं जानती
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